sapno me aa jate ho

“सपनों में आ जाते हो”

हर रोज़ अन्धेरा होते ही, मन पर बिन उड़ने लगता है,
क्या करुं समर्पित तुमको मैं, ये बातें करने लगता है.
अपनी प्यारी मीठी बातों में तुम भी मुझको उलझाते हो,
क्यूं सपनों में आ जाते हो?
क्यूं सपनों में आ जाते हो?
तेरे कंधों पे सर रख कर, मैं दूर कहीं खो जाती हूं,
बाकी दुनियां के लोगों को फिर आस पास ना पाती हूं.
मेरे मन के सूनेपन को तुम यादों से भर जाते हो,
क्यूं सपनों में आ जाते हो?
क्यूं सपनों में आ जाते हो?
पर जब ये आंखें खुलती हैं,
सच्चाई से तब मिलती हैं.
तुम आस पास ना होते हो,
जाने किस धुन में खो जाते हो,
क्यूं सपनों में आ जाते हो?
क्यूं सपनों में आ जाते हो?

प्रियंका दीक्षित “अनुग्रह”

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