चाह बैठी हूँ उसे....
दर्द बड़ा है मेरी जिंदगी की सबसे खुबसूरत तस्वीर में
चाह बैठी हूँ उसे जो लिखा नहीं तकदीर में।
उसकी चाहत तो कोई और है जो शायद खूबसूरत है,
पर क्या करूं मुझे उसकी बस उसी की ज़रूरत है।
खुदा भी ना दे पाया उसे मेरी जागीर में,
चाह बैठी हूँ उसे जो लिखा नहीं तकदीर में।
सीख रही हूँ इन दिनों अपने हालात को सहना,
जिस तरफ ले जाए हवा उस ओर बढ़ते रहना;
उसके खून के रिश्तों ने मुझे बदल दिया फ़कीर में,
चाह बैठी हूँ उसे जो लिखा नहीं तक़दीर में।
बड़े खुशनसीब हैं वो लोग जिन्हें वो प्यार करता है,
खुद का जीना भूल उनकी परवाह करता है;
हो गई बर्बाद मैं, हूँ सिमट गई लकीर में,
चाह बैठी हूँ उसे जो लिखा नहीं तक़दीर में।
चाह बैठी हूँ उसे जो लिखा नहीं तक़दीर में।।
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