दुनियाँ बसाते हैं
चलो एक ऐसी दुनियाँ बसाते हैं
सच हो या झूठ, सबको बताते हैं।
बनाते हैं सबको दोस्त और गले लगाते हैं
अपनों के सुख दुःख में सबकुछ भुलाते हैं।
खो देते हैं बड़े और छोटे होने का वहम
सब तो बराबर हैं
आख़िर किस बात का अहम।
जो दुखी हैं उन सब को हसाते हैं
झूठ हो या सच सबकुछ सबको बताते हैं।
कोशिश करते हैं भूलने की पुराने जज़्बात
जो दिल को दुखाते हैं उन्हें क्यूँ रखें याद?
बहुत कुछ और भी है इस दुनियाँ में रोने को,
एक पल में पाने को और अगले में ही खो जाने को।
मोहब्बत हैं जिनसे उन सब से जताते हैं
झूठ हो या सच सबकुछ सबको बताते हैं।
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