पेड़ की कहानी

       'पेड़ की कहानी'
एक पेड़ था थोड़ा पुराना, जर्जर हो चुका था उसका ताना बाना,
चिड़ियों ने आना बंद कर दिया था उसकी ओर,
हों काली घनी रातें या सुनहरी भोर,

फिर भी खड़ा था वो पेड़ एक आस के सहारे,
थोड़ा झुक हुआ, पूरा सूखा, अकेला जंगल के किनारे,
आस थी उसको कि जी उठूँगा एक दिन मैं भी,
मुझ तक भी आएगी शीतल बयार कभी न कभी,

कुछ पत्ते थे, मुरझाए से, अनमने से लटके,
खाये थे उन्होंने वक़्त के बेशक़ीमती झटके,
भरोसा था उसे कि जब तक ये पत्ते रहेंगे,
बाकी के पेड़ उसे ज़िंदा मानेेंगे और कहेंगे,

दिखाता था वो जंगल को कि वो मज़बूत कितना है,
जंगल भी कहता था कि हाँ, इसका तो मोटा तना है,
पर हो चुका था वो अंदर से खोखला और बेजान,
उसके पत्ते भी गवाँ चुके थे, अपना रंग, अपनी पहचान,

आज वो पेड़ गिर गया है,
जंगल के एक छोर पर अकेला पड़ा है,
आस जो बची थी वो अब टूट चुकी है,
टहनियाँ जो साथी थीं वो अब छूट चुकी हैं,

वो जंगल से अलग उगा था, या जंगल ही हो गया था उस से दूर,
या फिर विचित्र होने को वो ही था मज़बूर,
जंगल ने समझा कि वो अकेला ही भला है,
उसके पास स्वयं में ही जीने की अद्भुत कला है,

है वो भरपूर ख़ुद में ही, वो चाहता नहीं कुछ और,
पर वो तो अंदर से था निर्जीव, बाहर से कठोर,
आज ! आज ख़तम हो गई उसके जीवन की कहानी,
मिट गई है उसके उम्मीदों की सारी निशानी,

चाहा था उसने बस एक साथी विटप मज़बूत,
जो सराहे उसको और बना रहे उसका वज़ूद,
शायद वो फिर उगे कहीं इस आस में,
कि इस बार वो ख़ास पेड़ भी उगेगा उसी के पास में,
जो इस बार उसका साथ देगा, अच्छे और बुरे वक़्त में,
चाहे हों नई कोपलें या बदल चुका हो दरख़्त में।

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