चाहती हूँ

तुमसे दूर नहीं पर ख़ुद के पास जाना चाहती हूँ,
अपने सपनों को रंग और उम्मीदों को उड़ान देना चाहती हूँ।
आँकना चाहती हूँ खुद की क्षमताओं को हर तरह से
अपनी हिम्मत और  काबलियत को नई पहचान देना चाहती हूँ
बढ़ाना चाहती हूँ अपनी नज़रों में अपनी ही इज़्ज़त
मुझ पर तुम्हारे भरोसे को सम्मान देना चाहती हूँ।
रह नहीं पाऊँगी मैं ज़मीन पर रेंगते हुए शायद,
इसीलिए इन पंखों को एक आसमान देना चाहती हूँ।
ऐसा नहीं कि मुझे तुम्हारा साथ गवारा नहीं,
मैं तो खुद में तुम्हारे विश्वास को एक मक़ाम देना चाहती हूँ।

Comments

Popular posts from this blog

सह लूँगी

पेड़ की कहानी

"PROUD TO BE A TEACHER"