हो रही थी परीक्षा आज मेरी क्लास में
बैठा था एक मित्र मेरा आज मेरे पास में।

एक था सवाल कुछ ऐसा जो मुझे नहीं था आता,
पर नकल करने का इरादा भी नहीं था भाता।

क्या करूँ मैं क्या करूँ था बस इसी एहसास में,
बैठा था एक मित्र मेरा आज मेरे पास में।

गिनने लगा मैं अंक अपने कुछ सोचने था लगा,
मुश्किल तभी एक आ गयी जैसे नींद से था मैं जगा।

जो प्रश्न छोड़ा था मैंने परसों फ़िजूल जान कर,
टीचर ने वो पूछ लिया था सबसे इम्पॉर्टेन्ट मान कर।

हो जाऊँगा अब फेल मैं वो प्रश्न था कम्पल्सरी,
आँख, भौहें, त्योरियाँ सब चढ़ गयी थीं तब मेरी।

जैसे ऑक्सीजन ना आ रही हो अब तो मेरी साँस में,
बैठा था एक मित्र मेरा आज मेरे पास में।

वो प्रश्न १५ अंक का था, था बड़ा विकराल सा,
शुक्र,मंगल और शनि की तीव्र वक्र चाल सा।

हो गयी गलती है मुझसे क्या करूँ मैं अब भला?
क्यूँ रात कल थक हार कर जल्दी से सोने मैं चला?

दे देगा उत्तर मित्र अब था बस इसी विश्वास में,
बैठा था एक मित्र मेरा आज मेरे पास में।

साहस जुटाकर मित्र को दी दोस्ती की इक क़सम,
पर मित्र ने जो मुँह फेरा तो ये हुआ ना तब हज़म।

मिन्नत भी की, रिश्वत भी दी फिर भी ना उसने कुछ कहा,
अब हो गया बरबाद सब जो कुछ भी था मन में रहा।

दूँगा परीक्षा फिर से मैं सोचा यही उच्छ्वास में,
हो रही थी परीक्षा आज मेरी क्लास में,
बैठा था एक मित्र मेरा आज मेरे पास में।।

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