सह लूँगी

छुपी हुई है इस उर में असीमित पीडा,
जब तुम चाहोगे तो कह दूंगी.
उतार रखे हैं बदन से अपने सारे गहने
जब तुम आओगे तो पहनूंगी.
छोड गये हो मुझको तुम इस दुनिया अनजानी में
रह ना जाऊं सज्जा बनकर मैं तेरी इस कहानी में.
बेमांगे सब कुछ मिल जाता कुछ यूँ इस प तुम आ जाते
कर देते तुम तृप्त हृदय को जैसे नभ में  बादल छाते।
अनुभव छुअन तुम्हारी कर लूँ, कब ऐसा क्षण आयेगा?
दिव्य स्वप्न सा वो सुन्दर पल कब इन नयनों में छाएगा?
भर लेना बस आलिंगन में बाकी सब मैं सह लूंगी.
तुम बस दे दो साथ जो मेरा औरों के बिन मैं रह लूँगी।

Comments

Popular posts from this blog

पेड़ की कहानी

Thought