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मैं विष्णुपगा सी

(मेरी नई कविता) मैं विष्णुपगा (गंगा) सी मनमौजी, तुम शिव से निरन्तर साधक हो, बढ़ता है जो मेरी ओर कोई, हर उस संकट के बाधक हो। मैं हूँ चंचल, मैं अविरल हूँ, तुम सार्थक हो, तुम शास्वत हो, मेरे मन मेरे जीवन के तुम रक्षक, तुम ही पालक हो। है भाव यही, उन्माद यही तुम मेरे हो बस मेरे हो, हो छाँव घनी या धूप कड़ी, चाहे सम्मुख शत्रु बहुतेरे हों। (Pri)